चमत्कारी सिद्ध कुंजिका स्तोत्रम के लगातार पाठ से जीवन में सकारात्मकता का संचार होता है

सिद्ध कुंजिका स्तोत्रम

 चमत्कारी सिद्ध कुंजिका स्तोत्रम के लगातार पाठ से जीवन में सकारात्मकता का संचार होता है

सिद्ध कुंजिका स्तोत्रम :

सिद्ध कुंजिका स्तोत्र को सभी दुखों को हरने वाला एवम परम कल्याणकारी माना गया है। मान्यता है कि इस स्तोत्र का पाठ करने से मनुष्य को सभी प्रकार के कष्टों से मुक्ति मिलती है।Siddh Kunjika Stotram: नवरात्रि के नौ दिन बहुत ही पावन माने जाते हैं। इस दौरान मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है। नवरात्रि में यदि आप देवी भगवती अर्थात मां दुर्गा की कृपा पाना चाहते हैं तो सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ करें। आप कुंजिका स्तोत्रम का पाठ साधारण दिनों में भी बड़े आराम से कर सकते हैं।

सिद्ध कुंजिका स्तोत्र को परम कल्याणकारी माना जाता है एवम मान्यता अनुसार इस स्तोत्र का पाठ करने से मनुष्य को सभी दुख कष्टों से मुक्ति मिलती है और सभी मनोकामनाएं भी पूर्ण होती हैं। इस स्तोत्र में दिए गए मंत्र अत्यंत शक्तिशाली माने जाते हैं। कुंजिका स्तोत्रम के मंत्रों में बीजों का समावेश है और बीज मंत्र किसी भी मंत्र की शक्ति माने जाते हैं।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार यदि दुर्गा सप्तशती का पाठ आपको कठिन लगे या पढ़ने का समय न हो, तो आपको सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। सिद्ध कुंजिका स्तोत्र इस प्रकार है…॥

सिद्ध कुंजिका स्तोत्र इस प्रकार है

सिद्धकुञ्जिकास्तोत्रम्॥

शिव उवाच

शृणु देवि प्रवक्ष्यामि, कुञ्जिकास्तोत्रमुत्तमम्।

येन मन्त्रप्रभावेण चण्डीजापः शुभो भवेत॥१॥

न कवचं नार्गलास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम्।न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वार्चनम्॥२॥

कुञ्जिकापाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत्।अति गुह्यतरं देवि देवानामपि दुर्लभम्॥३॥

गोपनीयं प्रयत्नेन स्वयोनिरिव पार्वति।मारणं मोहनं वश्यं स्तम्भनोच्चाटनादिकम्।पाठमात्रेण संसिद्ध्येत् कुञ्जिकास्तोत्रमुत्तमम्॥४॥॥

अथ मन्त्रः॥

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ॐ ग्लौ हुं क्लीं जूं स:ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वलऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा।”॥

इति मन्त्रः॥

नमस्ते रूद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि।नमः कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिनि॥१॥

नमस्ते शुम्भहन्त्र्यै च निशुम्भासुरघातिनि॥२॥

जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरूष्व मे।ऐंकारी सृष्टिरूपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका॥३॥

क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोऽस्तु ते।चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी॥४॥

विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मन्त्ररूपिणि॥५॥

धां धीं धूं धूर्जटेः पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी।क्रां क्रीं क्रूं कालिका देवि शां शीं शूं मे शुभं कुरु॥६॥

हुं हुं हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी।भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः॥७॥

अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षंधिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा॥पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा॥८॥

सां सीं सूं सप्तशती देव्या मन्त्रसिद्धिं कुरुष्व मे॥इदं तु कुञ्जिकास्तोत्रं मन्त्रजागर्तिहेतवे।

अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति॥यस्तु कुञ्जिकाया देवि हीनां सप्तशतीं पठेत्।

न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा॥

इति श्रीरुद्रयामले गौरीतन्त्रे शिवपार्वतीसंवादे कुञ्जिकास्तोत्रं सम्पूर्णम्।॥

ॐ तत्सत्॥

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